मेरी कलम होगी, मेरा आरजू होगा ।
पैगामे-ए-प्रेम का आलाप ज़रूर होगा ॥
मेरे नाम का, एक राग कहीं होगा ।
मेरे राग में चिराग-ए-आग जरूर होगा ॥
मेरी दुनिया होगी, मेरा पहचान होगा ।
महफिल-ए-महबूब मुराद नही होगा ॥
PS: इन पंक्तियों को मै अनेक बार पड़ चुका हूँ। कभी अचा लगता हैं, कभी कछा लगता हैं। अगर आपको भी कछा लगे तो क्षमा करें ।
Saturday, January 30, 2010
Thursday, June 4, 2009
दर्द-ए-बयान
दर्द-ए-बयान, एक शेर नहीं करता
खुद की जुबान, मैं सुन नहीं सकता |
ए मजबूरी मेरे दिल की, क्या मैं बताऊँ
कुछ कहना भी है, और कह नहीं सकता |
खुद की जुबान, मैं सुन नहीं सकता |
ए मजबूरी मेरे दिल की, क्या मैं बताऊँ
कुछ कहना भी है, और कह नहीं सकता |
Subscribe to:
Posts (Atom)